Wednesday, July 15, 2020

Vitan Chapter 2 Literature वितान अध्याय 2 गद्य भाग

विद्यार्थियों


आज हम वितान पुस्तिका का अध्याय 2 - जूझ (लेखक - डॉ आनंद यादव) करेंगे |

सार
जूझ कहानी के रचयिता  डॉ आनंद यादव है | यह कहानी उनके द्वारा रचित आत्मकथात्मक उपन्यास
जूझ  का एक अंग है | यह एक किशोर के  भोगे हुए गांव के जीवन का खुरदरा यथार्थ और उसके
रंगारंग ग्रामीण परिवेश की अत्यंत विश्वसनीय जीवन गाथा है | इसमें जीवन के संघर्षों का अत्यंत
मर्मस्पर्शी वर्णन है | जूझ उपन्यास का कथा नायक आनंदा फिर से पांचवी कक्षा में प्रवेश पाना
चाहता है | पिछले वर्ष उसके पिता ने परीक्षा देने से पूर्व ही उसे स्कूल से निकाल लिया था | इस वर्ष
फिर उसका मन स्कूल जाने के लिए बेचैन रहता है | वह अपनी मां से बार-बार प्रार्थना करता है, कि
वह मुझे स्कूल में पढ़ने के लिए पिताजी को मनाए | उसे लगता है कि जीवन भर खेत में काम करने
से हाथ कुछ भी नहीं लगेगा | कि पढ जाऊंगा तो नौकरी लग जाऊंगा चार पैसे हाथ में होंगे तो कुछ
कारोबार किया जा सकता है | पिछले बरस जब से आनंदा ने स्कूल छोड़ा वह सारा दिन अकेला
काम करता रहता है | जबकि उसका पिता सारा दिन गांव में घूमता रहता है | नंदा को पढ़ाई का
अधूरापन कचोटता है | एक दिन उसने  उपले थापना अपनी मां से  पढ़ने की बात छेड़ दी | मां ने
अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी फिर भी उसने तर्क दिया कि अब खेत के सभी काम हो गए हैं |
अब कुछ भी नहीं करना बाकी रह गया है | उसने अपनी मां से जिद करके कहा कि वह दत्ता राव
देसाई से उसके पढ़ने के बारे में कहे |

रात के समय मां बेटा दोनों दत्ता जी राव देसाई से मिले और उन्हें पूरी बात बताई | उन्होंने बताया
कि दादा सारा दिन बाजार में रखमाबाई के पास समय व्यतीत कर देता है | खेती के काम में भी
हाथ नहीं लगाता है | मां ने देसाई को बताया कि आनंदा के पिता को सारे गांव में आजादी से घूमने
को मिलता रहे इसलिए उसने अपने बेटे को पढ़ना बंद करवा कर खेती में जोत दिया | देसाई ने
उनकी बातें ध्यान से सुन कर कहा कि अपने दादा अर्थात पिता को उनके पास भेजें | दत्ता जी राव
देसाई एक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्ति थे | दादा अर्थात आनंदा के पिता उन्हें मना नहीं कर 
सकते थे  | आनंदा  का पिता रात को देसाई जी से मिलने गया | वहां पर देसाई जी ने उन्हें खूब
खरी-खोटी सुनाई आनंदा भी वहां पहुंच गया | देसाई जी ने उससे पूछा, तू कौन सी कक्षा में पढ़ता है |
उसने बताया कि मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था परंतु दादा ने मना करने के बाद अब स्कूल नहीं जाता | 
बातों बातों में स्पष्ट हो गया कि अनंदा का दादा रत्नप्पा सारे गांव में घूमता है | इस तरह देसाई जी
ने उसे खूब डांटा और निर्देश दिया कि वह आनंदा की पढ़ाई कल से शुरू करवा दे | आनंदा खेत और
पढ़ाई दोनों काम करेगा | यद्यपि दादा ने दत्ता जी राव देसाई के सामने कई  दलीलें रखी | लेकिन
उसकी सभी बातों को देसाई जी ने नकार दिया | दादा ने घर आकर उसे वचन लिया कि वह पाठशाला
जाने से पहले खेतों में पानी लगा कर जाएगा और शाम को आकर भी  गाय-भैंसों को चराने ले जाएगा |

 आनंदा ने फिर से पाठशाला जाना आरंभ कर दिया उसे पांचवी कक्षा में सभी बच्चे  नए दिखे |
पहले दिन एक शरारती लड़के चौहान ने उसे बहुत तंग किया जो उसकी धोती को बार-बार खींचता
था तथा उसके गमछे को इधर-उधर फेंका था | आनंदा बहुत दुखी था | आधी छुट्टी में भी उसे कई
बच्चों ने तंग किया | एक बार तो उसे लगा कि इस कक्षा से  बढ़िया तो वह खेत में ही था, जहां कोई
दूसरा तंग तो नहीं करता था | धीरे-धीरे उसका मन कक्षा में रमने लगा | वसंत पाटिल नामक लड़के के
पास बैठने लगा | जो गणित विषय में बहुत होशियार था | आनंदा को भी लगा कि वह गणित के सवाल
निकालकर वसंत पाटिल की तरह होशियार बन जाए | इसलिए घर जाकर भी  वह मेहनत करता | 
स्कूल में वसंत पाटिल की दोस्ती का फायदा उठाकर गणित विषय में होशियार हो गया | अब वह भी
पाटिल की तरह जल्दी-जल्दी गणित के सवाल हल करने लगा | मास्टर जी प्रसन्न होकर उसे आनंदा
नाम लेकर पुकारने लगे | मास्टर के अपनेपन और बसंत की मित्रता के कारण उसका पाठशाला में मन
लगने लगा | 

न. वा.सोदलगेकर मराठी के अध्यापक थे | वह स्कूल में  मराठी कविता पढ़ाते समय उसे पूरी तरह
डूब जाते थे | उन्हें मराठी और अंग्रेजी की बहुत कविताएं कंठस्थ थी | उनका गला सुरीला था | छंद
और लय का ज्ञान था | वे स्वयं भी कविता करते थे और बच्चों को भी कविता करने के लिए प्रेरित
करते थे | लेखक तन्मय अर्थात लगन से सुनता था | जब लेखक खेत पर पानी लगाया करता था और 
ढोर चराता था | तब एकांत में कविताओं को मास्टर के हाव-भाव, यदि-गति, आरोह- अवरोह के
अनुसार गाता मास्टर की तरह अभिनय करता | उसी समय उसने अनुभव किया कि मास्टर की तरह
अन्य कविताएं भी पढ़ी जा सकती हैं | लेखक अपने आप में ही मस्त रहने लगा |उसे एकांत अच्छा
लगने लगा | लेखक ऊंची आवाजों में कविता गाता, अभिनय करता और कभी-कभी नाचने भी लगता |
लेखक ने कविता गाने की अपनी पद्धति सीख ली | लय भाव उसके चेहरे पर आने लगे मास्टर को लेखक
की कविता गायन इतना अच्छा लगा कि उन्होंने छठी सातवीं के बालकों के सामने उसे गवाया |

पाठशाला के एक समारोह में भी उसने कविता गाया | लेखक को लगा कि वह भी खेतों पर गांव पर
गांव के लोगों पर कविता लिख सकता है अतः भैंस चराते चराते फसलों पर, जंगली फूलों पर, लेखक
भी तुकबंदी करने लगा | इन कविताओं को गुनगुनाना,फिर मास्टर जी को दिखाता | लेखक को कविता
लिखने की इतनी धुन लगी कि यदि कागज पेंसिल ना भी होता तो वह कंकड़ से पत्थर की शीला पर
लिख लेता और कंठस्थ होने पर उसे  साफ कर देता  और फिर वह मास्टर जी को जाकर सुना देता |
कविता लिखने के लिए मैं हमेशा कागज और पेंसिल अपने पास रखता | मास्टरजी ने उसे कविता में
संस्कृत भाषा के उपयोग छंद की जाति की पहचान , अलंकारों का प्रयोग आदि के संबंध में बताया
और शुद्ध लेखन के नियम भी बताएं | धीरे-धीरे आनंदा की काव्य प्रतिष्ठा निखरती गई और उनका
आत्मविश्वास बढ़ने लगा | और उसकी मराठी भाषा भी सुधर गई | वह लिखते समय बहुत सचेत रहने 
लगा जब शब्दों का नशा आनंदा पर चढ़ने लगा तो ऐसे लगा कि मन में कोई बाजा बजता रहता है | इस
प्रकार आनंदा एक साधारण छात्र से साहित्यकार बन गए |

प्रश्न 1 - जूझ कहानी के शीर्षक का औचित्य सिद्ध कीजिए?
                                               अथवा
जूझ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या वह शीर्षक कथा नायक की
केंद्रीय चारित्रिक विशेषताओं को उजागर करता है?
उत्तर -
पाठ का शीर्षक जूझ संपूर्ण कथा के केंद्र में निहित है | जूझ का अर्थ है - संघर्ष | कथा नायक
आनंद ने पाठशाला जाने के लिए संघर्ष किया | उसके संघर्ष में उसकी मां व  देसाई  सरकार का
सहयोग शामिल है | पाठशाला में भी कथानक को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है |
तभी वह मॉनिटर बन सका | इस संघर्ष में उसे गणित मास्टर का सहयोग भी मिला | उसने कभी बनने
के लिए संघर्ष किया और इस संघर्ष में उसका सहयोग मराठी अध्यापक ने किया | आश्चर्य की संपूर्ण
कथा में नायक ने संघर्ष किया | नायक के दादा को छोड़कर अन्य सभी पात्र उसके संघर्ष में सहयोगी
रहे | अतः यह कहना उचित है कि जूझ शीर्षक एकदम उचित है | 

इस शीर्षक से कथानक की संघर्ष में प्रवृत्ति का बोध होता है | दादा द्वारा पाठशाला में रोके जाने के
बाद वह चुप नहीं बैठता | पहले अपनी मां को अपने पक्ष में करता है, फिर देसाई सरकार की मदद
लेता है | फिर अपने दादा को आश्वस्त करता है और अपने ऊपर लगे आरोपों का उत्तर देता है | इसे
नायक की जुझारू प्रवृत्ति का बोध होता है पाठशाला की विपरीत परिस्थितियां का मुकाबला करने में
भी जूझना पड़ता है | जैसे कि,|धोती की  लांग खोल लेने पर और उसका अंगोछा भी इधर-उधर क्लास 
मैं फेकना लेकिन वह लगन और परिश्रम के कारण मॉनिटर के बराबर सम्मान पाने लगता है | और वे
स्वयं कविता लिखता है यह सब कुछ नायक की जूझ का ही परिणाम है |

प्रश्न 2 - स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ ?
                                        अथवा 
जूझ के लेखक को मराठी अध्यापक क्यों अच्छे लगते थे ,दो कारण लिखिए ?
                                        अथवा
जूझ कहानी के लेखक को कविता लिखने की प्रेरणा कैसे मिली ?
उत्तर -
लेखक मराठी के कवि और अध्यापक  के कविता पढ़ाने के ढंग से बहुत प्रभावित हुए | उनकी कला
और कविता की गति, चाल, हाव-भाव सीखने का प्रयास करने लगे | उसे यह भी ज्ञात हुआ कि
अध्यापक की चाल पर दूसरी कविताएं भी पढ़ी जा सकती हैं | उसने अनेक कविताओं को स्वयं अपनी
चाल से गाना शुरू कर दिया | कविताओं में रुचि लेने के कारण लेखक की मराठी अध्यापक से
निकटता भी बड़ी लेखक ने अध्यापक के दरवाजे पर लगी - “मालती की बेल” पर उनकी लिखी एक
कविता पढ़ी | उसने उस मालती की बेल को भी देखा | इससे उनको फसलों पर, जंगली फूलों पर तुकबंदी
करने की प्रेरणा मिली | धीरे-धीरे में कविताएं रच कर मास्टर जी को दिखाने लगे | मास्टरजी ने उसे
कवि की भाषा , कविता में संस्कृत के उपयोग, छंद की  जाति,  लय-क्रम, अलंकारों की  सूक्ष्मता
और शुद्ध लेखन के संबंध में बताया | मास्टर जी ने प्रोत्साहन के तौर पर उसे छठी सातवीं के बालकों
के सामने काव्य पाठ करने का अवसर भी दिया और पाठशाला के एक समारोह में भी गायन का मौका
दिया | इससे उसका विश्वास दृढ़ होता गया और वह भी कविता लिख सकता है |

प्रश्न 3 - जूझ कहानी के आधार पर लेखक में कविता के प्रति रुचि जगाने और कविता करना
सिखाने में उसके अध्यापन के योगदान को स्पष्ट कीजिए |
                                          अथवा
श्री सौंदलगेकर अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति
लेखक के मन में रुचि जगाई |
उत्तर -
श्री सौंदलगेकर मराठी के अध्यापक और कवि थे | उनके अध्ययन किया विशेषता थी कि वे कविता
पढ़ाते  समय स्वयं उसमें रम जाते थे | वे कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे | वे सुरे ले गले से कविता
का सस्वर पाठ करते, छंद की लय - तुक का ध्यान रखते थे | कविता के भाव को अभिनय के द्वारा
समझाते थे और उसी भाव की अन्य कविताओं को भी सुनाते बीच-बीच में वे अन्य सुप्रसिद्ध कवियों से
अपनी मुलाकात के संस्मरण भी सुनाते थे |  कभी-कभी  वह अपनी कविताएं भी सुना देते थे | सौंदलगेकर
के अध्ययन की इन्हीं विशेषताओं के कारण लेखक के मन में कविताओं के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और
वह उसी हाव भाव, ध्वनि, गति, चाल और रस का आस्वादन आंखों और कानों की सारी शक्तियां
लगाकर करने लगे |

प्रश्न 4 - कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा
में क्या बदलाव आया?
उत्तर -
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद लेखक स्वयं कहते हैं कि इन कविताओं के साथ
खेलते हुए मुझे दो बड़ी शक्तियां प्राप्त हुई | पहले ढोर चराते हुए, खेतों में पानी लगाते हुए, दूसरे काम
करते हुए अकेलापन बहुत खटखटा था | किसी के साथ बोलते हुए, गपशप करते हुए, हंसी मजाक करते
हुए, काम करना अच्छा लगता था | हमेशा कोई ना कोई साथ होना चाहिए ऐसा लगता था | लेकिन जब
कविता के प्रति उनका लगाव हुआ तो धारणा एकदम बदल गई | उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा | अब
वह अकेलेपन में अपनी कविताओं से खेलने लगा | मैं सोचने लगा कि मैं जितना अकेला रहे उतना अच्छा
है | मैं चाहता था कि कोई उसे कविता गाते, अभिनय करते और कविता रचते समय ना देखें और ना ही
कोई उन्हें  टोके | कविता के प्रति लगाव के बाद लेखकों को अकेलापन अच्छा लगने  लगा |

प्रश्न 5 -  आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही
था या लेखक के पिता का ? तर्क सहित उत्तर दीजिए |
उत्तर - 
हमारे विचार में पढ़ाई लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता रावजी रवैया सही है लेखक के पिता का
रवैया अनुचित है लेखक की यह सोच की पढ़ जाऊंगा तो नौकरी लग जाऊंगा | चार पैसे हाथ में रहेंगे
जिन से कुछ कारोबार भी किया जा सकता है | दत्ता राम जी ने लेखक की पढ़ाई की इच्छा और पढ़ाई के
प्रति लगाव को भलीभांति जान लिया था | इस बात से चिढ़ गए थे, कि लेखक के पिता ने अपनी स्वतंत्रता
के लिए लेखक को खेतों में जोत दिया | लेखक को पढ़ाने के पीछे दत्ता रा व  का कोई स्वार्थ नहीं था |
वे तो लेखक की प्रतिभा और लगाव के कारण ही उसका पक्ष ले रहे थे | 

लेखक के पिता का लिखाई पढ़ाई के संबंध में रवैया एकदम अनुचित था | लेखक का पिता अपने स्वार्थ
में आराम के लिए बेटे को नहीं पढ़ाना चाहता था | वह भली भांति जानता था कि यदि उसका पुत्र पढ़ने के
लिए पाठशाला जाने लगा तो उसे स्वतंत्र घूमने का अवसर नहीं मिलेगा | ना ही वह रखमाबाई के पास
जा सकेगा | यही कारण है कि हमें पढ़ाई लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता राव जी का रवैया बिल्कुल
उचित लगा |

प्रश्न 6 - बाजीराव से पिता पर दबाव डालने के लिए लेखक और उसकी मां का एक झूठ का
सहारा लेना पड़ा यदि झूठ का सहारा ना लेना पड़ेगा तो आगे का घटनाक्रम क्या होता ?
अनुमान लगाएं |
उत्तर - 
लेखक और उसकी मा दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए गए थे | अपनी समस्या रखने के
बाद दोनों ने उठते- उठते दत्ता जी से कहा - हमने यहां आकर यह सभी बातें कही है |यह मत बता देना
नहीं तो, हम दोनों की खैर नहीं | मां अकेली साग -भाजी देने आई थी | वह बता देंगे तो अच्छा होगा |

ऐसा ही झूठ लेखक की मां ने अपने पति से बोला था - आते ही मा ने दादा से कहा - ”साग-भाजी देने
देसाई सरकार के यहां गई थी, तो उन्होंने कहा था कि बहुत दिनों से तेरा मालिक दिखाई नहीं दिया है
खेत से आ जाने पर जरा इधर भेज देना” |

यदि इन  दोनों झूठों का सहारा ना लिया गया होता तो यह बता दिया होता कि हम दोनों मां बेटा दत्ता
जी के पास इस प्रयोजन से गए थे तो दादा की नाराजगी बहुत बढ़ जाती | संभवत दोनों की खूब पिटाई
होती | राव सरकार तो लेखक के घर आते नहीं और लेखक का दादा उनके यहां जाने से बचता फिरता | 
यदि दादा वहां जाने के लिए बाध्य भी हो जाते तो भी तीसरा झूठ दादा को बुलाने आया हूं | अभी खाना
नहीं खाया है बोलने के लिए लेखक वहां नहीं जा पाता | दादा लेखक के ऊपर झूठे आरोप लगाकर
राव सरकार को संतुष्ट कर देता और लेखक पढ़ने से वंचित रह कर खेती में ही लगा रहता |

प्रश्न 7 - जूझ  कहानी का कथा नायक आधुनिक किशोर छात्रों के लिए एक आदर्श प्रेरणा स्रोत
कहा जा सकता है स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर -
जूझ कहानी में कथा नायक ने मुख्यता अपनी पढ़ाई के प्रति जूझने की भावना को उजागर किया है |
इसमें यह दर्शाया गया है कि लेखक को पढ़ाई जारी रखने के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ा | लेखक
के पिता बहुत ही आलसी और गैर जिम्मेदार व्यक्ति थे | वह लेखक को पाठशाला भी नहीं  भेजता था
क्योंकि वे लेखक से खेत का काम करवाना चाहता था |

गांव के एक प्रतिभाशाली व्यक्ति दत्ता जी राव के कहने पर उन्होंने लेखक को पाठशाला तो भेजा,
लेकिन अपनी कुछ शर्तों के साथ | उनकी शर्तें थी कि लेखक सुबह के 11:00 बजे तक खेतों में पानी देकर
फिर पाठशाला जाएगा और पाठशाला से आकर फिर एक घंटा  पशुओं को चराएगा | यदि किसी दिन
खेत में अधिक काम होगा, तो उस दिन वह पाठशाला से छुट्टी भी ले लेगा | इतनी कड़ी मेहनत के बाद
भी लेखक ने अपने पढ़ने का जुनून नहीं छोड़ा | लेखक प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ |
पढ़ाई भी करता रहा और खेत का काम भी संभालता रहा | इस प्रकार यह कहानी हमें प्रतिकूल
परिस्थितियों से जूझने की प्रेरणा देती है कि व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाली बाधाओं एवं
समस्याओं से ढूंढना चाहिए और उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए | 

शुभकामनाओं सहित !

नीलम
35-मॉडल, चंडीगढ़ |

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